आरोह नमक का दरोगा प्रश्न एवं उत्तर – मुंशी प्रेमचंद
मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित नमक का दरोगा कक्षा 11 की हिंदी पुस्तक आरोह का पहला अध्याय है। इस पोस्ट में हम इस अध्याय के एनसीईआरटी समाधान पढ़ेंगे। नमक का दरोगा कक्षा 11 आरोह का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। प्रश्न एवं उत्तर शुरू करने से पहले हम पूरे अध्याय का सारांश पढ़ेंगे, तो आइए पहले अध्याय नमक का दरोगा कक्षा 11 का सारांश पढ़ना शुरू करें।
नमक का दरोगा अध्याय का सारांश
नमक का दरोगा कहानी में हमें मुख्य तीन पात्र देखने को मिले हैं। पाठ में मुंशी वंशीधर जो की नमक का दरोगा है वह सर्वप्रथम देखने को मिले हैं। एक रात्रि जब वह नमक के तैरखानों को देखने के लिए पहुंचे तो उन्होंने देखा शहर के सबसे धनी व्यक्ति पंडित अलोपीदीन नमक की कालाबाजारी कर रहे थे। यह देखकर मुंशी वंशीधर ने उन्हें जेल में ले जाने का फैसला किया।
पंडित अलोपीदीन ने उन्हें धन का लालच देने का प्रयास भी किया परंतु वह अपनी ईमानदारी पर डटे रहे एवं धन को लेने से साफ इनकार कर दिया। अगले दिन वह पंडित अलोपीदीन को लेकर कोर्ट में पहुंचे पंडित अलोपीदीन के साथ कई वकील खड़े हुए परंतु वंशीधर ने उन्हें कोर्ट में पेश किया। उनके पास कोई सबूत न होकर वह हार गए। उन्हें दारोगा पद से निष्कासित कर दिया गया एवं उनके पिता वृद्ध मुंशी भी उन पर बहुत क्रोधित हुए। अगले दिन पंडित अलोपीदीन उनके घर पहुंचे एवं अपनी सारी धन संपत्ति का स्थाई मैनेजर मुंशी वंशीधर को बना दिया।
नमक का दरोगा प्रश्न एवं उत्तर
प्रश्न-1 कहानी का कौन-सा पात्र आपको सर्वाधिक प्रभावित किया और क्यो?
उत्तर- कहानी नमक का दारोगा का मुख्य पात्र है मुंशी वंशीधर ने हमे सर्वधिक प्रभावित किया है। क्योकि मुंशी वंशीधर अपने कर्तव्य पथ से जरा भी विमुख नहीं हुआ। पूर्व निष्ठा और ईमानदारी से अपने कर्म को करता रहा। किसी भी प्रकार के लोभ में न आकर अपनी सत्यत्त्व व धर्मपरायणता को निभाता है। इन्ही विशेषताओं से मुंशी वंशीधर ने हमे प्रभावित किया।
प्रश्न-2 नमक का दारोगा कहानी में पंडित अलोपिदिन के व्यक्तित्व के कॉन से दो पहलु उभरकर आते हैं?
उत्तर- कहानी में पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व के दो पहलू पक्ष उभर कर सामने आए हैं। पहले पहलू वह एक अहंकारी धनवान के रूप में दिखाई देते हैं जो अपने धन वैभव पर इतना घमंड करता है। उसे ही सब कुछ मानता है और संसार की प्रत्येक वस्तु को खरीदने का शक्तिशाली साधन मानता है। दूसरे पहलू में वह उदार व्यक्ति के रूप में सामने आता है जो मुंशी वंशीधर के सामने बड़ी उदारता और प्रेम से पेश आते हैं तथा अपनी संपूर्ण संपत्ति का स्थाई मैनेजर नियुक्त करते हैं अर्थात आलोक दिन का एक स्वच्छ हृदय व उलझे हुए व्यक्ति हैं जो दूसरों की भावना को समझते हैं।
प्रश्न 3 – कहानी के लगभग सभी पात्र कि किसी न किसी सच्चाई को उजागर करते हैं। निम्नलिखित पात्रों के संदर्भ में पाठ के अंश को उद्धत करते हुए बताइए कि यह समाज की कि सच्चाई को उजागर करते हैं:-
(क) वृद्ध मुंशी
वृद्ध मुंशी पाठ का अंश – यह तो पोर का मजार हे। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूंढना जहां कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चांद है जो एक दिन दिखाई देता हैं। जो घटते घटते लुप्त हो जाता है।
समाज की सच्चाई के अर्थ में- व्रत मुंशी के माध्यम से साहित्यकार प्रेमचंद ने उन अभिभावकों का कटाक्ष किया है जो अपनी संतान को अच्छे संस्कारों की बजाय लोभ, लालच कर्तव्य हीनता, वह घूस लेना जैसे गलत कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं। उन्हें विलासित जीवन जीने के लिए गलत रास्ते पर चलने के लिए कहते हैं।
(ख) वकील
पाठ का अंश- बड़ी तत्परता से इस आक्रमण को रोकने निमित्त वकीलों की एक सी तैयार की गई न्याय के मैदान धर्म और धन मे युद्ध ठन गया। वकीलों ने यह फैसला सुना और उछल पड़े।
समाज की सच्चाई के अर्थ में- आज के समय में न्याय के क्षेत्र में जीत सत्य की होती है क्योंकि थोड़े से रूपों के लालच में न्याय की पैरवी करने वाले बिक जाते हैं और ऐसे वकील सत्य को असत्य बताकर न्याय के साथ भी अन्याय कर देते हैं। एक सामान्य जन जिसके पास सत्य के सिवा कुछ नहीं है वह हार जाता है। धनवान अपने धन के प्रभाव से असत्य होने पर भी जीत जाते हैं।
(ग) शहर की भीड़-
जब दूसरे दिन पंडित अलोपीदीन अभियुक्त होकर कांस्टेबल के हाथों में हथकड़ियां हृदय में श्लोनी शोक भरे लज्जा से गर्दन झुकाए, जब अदालत की तरफ चले तो वहां भीड़ ही भीड़ थी। भीड़ के मारे छत और दीवार के बीच कोई भेद नहीं रहा।
समाज की सच्चाई में- आज के समय में कोई दोषी हो तो या निर्दोष उसे सब देखने के लिए लोग इस तरह इकट्ठा हो जाते हैं जैसे कोई मनोरंजन का कार्यक्रम चल रहा हो। उस भीड़ को किसी से कोई सहानुभूति या हमदर्दी नहीं होती। उन्हें तो केवल तमाशा भर देखना होता है और छोटी सी बात को चर्चा का विषय बनाकर उसका पहाड़ खड़ा कर दिया जाता है यह समाज की बुरी किंतु सच्चाई है।
प्रश्न 4 निम्नलिखित पंक्तियों को ध्यान से पढ़िए-
नौकरी से ओहदे की……………. तुम्हें क्या समझाऊं।
(क) यह किसकी युक्ति है?
यह पंक्ति मुंशी वंशीधर के पिता वृद्ध मुंशी जी की है।
(ख) मासिक वेतन को पूर्णमासी का चांद क्यों कहा गया है?
मासिक वेतन को पूर्णमासी का चांद इसलिए कहा गया है क्योंकि जिस प्रकार पूर्णिमा की रात चांद हमें अपने पूर्ण आकार में दिखाई देता है उसके बाद वह धीरे-धीरे घटते कम हो जाता है। अंत में पूर्ण रूप से लुप्त हो जाता है। ठीक उसी प्रकार सरकारी मासिक वेतन महा में एक पूर्ण रूप से प्राप्त होता है। और घटते घटते कम हो जाती है यह पता ही नहीं चलता है जैसे पूनम का चांद गायब हो गया हो।
(ग) क्या आप एक पिता के इस व्यक्तित्व से सहमत है?
हम एक पिता के इस व्यक्तित्व से बिल्कुल सहमत नहीं है क्योंकि एक पिता अपनी संतान में उच्च संस्कारों प्रेम व्यवहार सच्चाई वह ईमानदारी पर चढ़ने वाले गुणो का समावेश करता है। ना कि उनको लोभ, लालच, ठगी, घूसखोरी अवगुणों को बताता है।
प्रश्न 5- नमक का दरोगा कहानी के कोई जो अन्य शीर्षक बताते हुए इसके आधार को भी स्पष्ट कीजिए?
उत्तर नमक का दरोगा कहानी के दो शीर्षक निम्न है-
1. ईमानदारी का फल
2. कर्तव्य निष्ठा – श्रेष्ठ कर्म
शीर्षक के आधार पर- इन दोनों शीर्षक का आधार यही है की मुंशी वंशीधर द्वारा अपनी पूर्ण ईमानदारी के साथ अपने कर्म के प्रति कर्तव्य निष्ठ है किसी भी प्रकार के लोभ व लालच में ना आकर अपने सत्य कर्म को निभाने और नौकरी से बर्खास्त होने के बाद स्वाभिमान के जीवन जीते थे।
प्रश्न 6- कहानी के अंत में अलोपीदीन के वंशीधर को मैनेजर नियुक्त करने के पीछे क्या कारण था। तर्क सहित उत्तर दीजिए। आप इस कहानी का अंत किस प्रकार करते?
उत्तर- मुंशी वंशीधर अपने कर्तव्य पथ पर जरा भी विमुख न हुआ पूर्ण निष्ठा एवं ईमानदारी से अपने कर्तव्य को निभाते था। किसी भी प्रकार के लोभ में न आकर अपनी धर्म परायणता को निभाते था। इसी विशेषताओं के कारण पंडित अलोपीदीन ने मुंशी वंशीधर को अपनी संपूर्ण जायदाद का स्थाई मैनेजर नियुक्त किया। यदि हम कहानी का अंत करते तो इस प्रकार से करते जिस प्रकार पंडित अलोपीदीन ने किया है हम भी मुंशी वंशीधर को उसकी सच्चाई और ईमानदारी के लिए सम्मानित करते।